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Sab din sukh hi

सब दिन सुखहि

अभागी साधो का घर दूर ॥ धृ ॥
सब दिन सुखहि बसे घर उनके ।
हरपर चमके नूर ॥1॥
कमलपत्र सम रहत जगत में
पाप पुण्य से दूर ॥2॥
काम क्रोध से लढत निरंतर ।
रखकर साक्ष हुजूर ॥3॥
पर उपकार दया दीननपर ।
हरिकीर्तन मायूर ॥4॥
सोहं हँसा जपे दिनराती ।
चेतन वृत्ति सहूर ॥5॥
तुकड्यादास संतन का चेला ।
रंग गया भरपूर ॥6॥